Kuch Kalpana Ke Shor Se
शुरू कहाँ से होती हैं ये कायनात … ये सोचु मैं,
एक बार तो खुदा से ये पूछूँ मैं,
की क्या धरती मैं हम खुद आये हैं ,
या खुदा के अकेलेपन ने हमें बुलाया हैं |
हम खुद से चलते हैं
या धागे बंधी गुड़िया हैं
एक सिरा खुदा ने थामा हैं
और दूजे से हमें नचाया हैं
कभी मन मार के चलते हैं
तो कभी राह से भटकते हैं
आंधी में भी खड़े रहे ,
तो कभी फूल की चुभन से तड़पते हैं .
रास्ते हज़ार मिलते हैं
हर एक मोड़ एक नए मोड़ से जुड़ते हैं
मगर जिंदगी जब सच्ची राह पर चले
तब वो रस्ते खुदा के घर की तरफ मुड़ते हैं
Anuradha Mohapatra.
MBA-IDS I