एक मुसाफिर

सबको राह दिखाता मुसाफिर आज फिर अकेला क्यों खड़ा है क्या अड़चन है जो मन में दबाए रखा है गुजर जाते हैं दिन सुने जागती राते दिमाग में हजारों खयाल है मंडराते पर वह मुसाफिर अपनी राह पर बड़ा चला जाता है खुशियां दुख भला बुरा सब कुछ पता है साथ देते सब का यह दिन दुनिया से लड़ा है फिर भी यह मुसाफिर दुख दर्द से भरा है खुशियां इसकी किस्मत में नहीं ऐसा सबको लगता है लोगों को दुख देना इसकी फितरत में नहीं फिर भी हर कोई इसके लिए बदलता है इसीलिए सड़क को जानते हुए भी वह भटका पड़ा है सबको राह दिखाता मुसाफिर फिर आज क्यों अकेला खड़ा है फिर आज एक नई कशमकश में गिरा है बेखौफ होकर दुनिया की दलीलों से तो यह भी लड़ा है फिर भी वह मुसाफिर आज अकेला खड़ा है क्या अड़चन है जो मन में दबाए पड़ा है     यामिनी

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